Monday, November 12, 2018

ज़िन्दागी मेरी TEACHER : त्याग और परिश्रम

     
   
        हेलो दोस्तो ! मैं आपका दोस्त निष्कर्ष सिद्धार्थ! कैसे है आप सभी , मैं आशा करता हु अच्छे ही होंगे। हमने अपने पिछले पोस्ट्स में काफी अच्छे सिद्धांत समझे जो हमे हमारी टीचर ज़िन्दगी हमे सीखाना चाहती है, और कृपया कर आप उसपर भी एक नज़र डालिए। आज हम उस टॉपिक पर चर्चा करेंगे जो हमारे सारे टॉपिक्स का अंत है या फिर कहे तो शुरवात है। दोस्तो हम सभी जानते है की परिश्रम से सफलता हासिल की जा सकती है, जो हमे हमारे बचपन से ही हमारे माता पिता और हमारी पुस्तको द्वारा समझाया जाता है। क्या यह सच है? क्या परिश्रम से सचमुच सफलता हासिल की जाती है? और अगर ऐसा है तो मजदूर और हमाल क्यों अमीर नही है? क्यों दिन रात मेहनत करने के बाद भी वो दो वक़्त के खाने के लिए तरस रहे है? क्या कोई इसका जवाब दे सकता है? शायद नही! मैं दे सकता हु,लेकिन अभी नही आगे आपको इसका जवाब मिलेगा। दोस्तो हम अक्सर सुनते आ रहे है की परिश्रम करो अच्छा फल मिलेगा, और सभी शायद अपने से छोटे उम्र वालो को यही बताते है, लेकिन कभी कोई परिश्रम का सही रास्ता नही बताता, कोई नही बताता की परिश्रम की परिभाषा क्या है और परिश्रम की ताक़त क्या है। आज हम इसी टॉपिक पर बात करेंगे जिसमे हमे परिश्रम को समझना है और उसके लिए कितने त्याग करने पड़ते है, क्योंकि मेरे दोस्तों इस दुनिया में बिना त्याग के कभी कुछ नही मिलता। इस ज़िन्दगी का उसूल ही है एक हाथ दे और एक हाथ ले और हमारी टीचर ज़िन्दगी भी हमे तभी सही जीवन देती है जब हम भी उसे सही गुरुदक्षिणा दे अर्थात बड़े से बड़े त्याग करे सफलता हासिल करने के लिए। तो आइये शुरू करते है।

             परिश्रम! ये परिश्रम क्या है? आप कहेगे किसी भी चीज़ के लिए कड़ी मेहनत करना है परिश्रम। ये जवाब सही भी है और शायद सभी जानते भी है। लेकिन परिश्रम क्या है ये जानने से ज़्यादा ज़रूरी क्या है? शायद आपमे से अधिकतर लोग इसका जवाब नही दे पाएंगे। चलिये मैं ही बताता हु! परिश्रम क्या है ये जानने से अधिक ज़रूरी है - 'परिश्रम की ताक़त  क्या है यह जानना।' परिश्रम की ताक़त में इतना बल होता है की वह एक पहाड़ भी हिला दे और ऐसे कही उदहारण के बारे में हम सभी जानते भी है। आज की इस दुनिया में कई टैलेंटेड बच्चे है वयक्ति है और जिनियस लोग है जो मानते है उनसे कोई नही जीत सकता लेकिन कई बार देखा गया है की उनसे कम टैलेंटेड और कम जिनियस बच्चा या वयक्ति उन्हें पछाड़कर आगे निकल गया, और इसका एक ही कारण था उनका जीतोड़ परिश्रम करना, इसका एक ही कारण था उनके अंदर की भूक जो उन्हें मजबूर करती थी की चाहे जान क्यों ना चले जाए लेकिन हमे तब तक परिश्रम करना है जब तक जीत न मिल जाए। टैलेंट को एक ही चीज़ हरा सकती है और वो है हार्डवर्क। ये मैं नही कहता ये हमारा इतिहास कहता है, इसीलिए सबसे पहले अगर कुछ बनना है तो मेहनती बनो और हमारी टीचर ज़िन्दगी का सबसे आखरी सबक भी यही है क्योंकि जीवन में जब कुछ काम नही आता तब सिर्फ मेहनत काम आती है दोस्तो। इस दुनिया में इतने टैलेंटेड लोग है जो सोचते है की उन्हें सफलता हासिल करने के लिए मेहनत करने की ज़रूरत ही नही है और वह लोग सबसे बड़ी गलती यही पर कर देते है और उनसे कम टैलेंटेड वयक्ति सिर्फ मेहनत कर उनसे आगे निकल जाता है और वह वही के वही रह जाते है। शुरवात में मैने आपसे एक सवाल पूछा था की क्यों एक मजदूर इतनी मेहनत करने के बाद भी अमीर नही बन पाता? इसका सीधा जवाब यह है के उसके जीवन में मेहनत करने का मकसद सिर्फ अपने लिए खाने का इंतेज़ाम करना ही होता है और उसके अलावा कोई मकसद नही होता और वह अपने आप को सीमित दायरों में बांधकर चलता है और उतनी ही मेहनत करता है जितना उसका लक्ष्य होता है। तो दोस्तो इससे आप समझ ही सकते हो की बिना मकसद के परिश्रम का भी कोई वजूद नही होता। आपको हमेशा अपने परिश्रम को एक मकसद देना पड़ेगा और तब तक मेहनत करनी पड़ेगी जब तक आप उसे हासिल ना कर लो चाहे इसमें जान क्यों न लगाना पड़े। इसे एक उदारहण से समझते है - एक ही घर में 3 भाई अपने पिता के साथ रहते थे और तीनो काफी मेहनती भी थे, लेकिन तीनो की सोच में काफी फर्क था और वो फर्क पैसो की कमाई को लेकर था क्योंकि सबसे बड़ा भाई सोचता की कमाई उतनी ही करनी चाइये जितनी ज़रूरत हो मतलब खाने पूर्ति और उससे छोटा भाई सोचता था की कमाई उतनी होनी चाइये जिसमे ज़रूरतों के साथ कुछ पैसा भी बच जाना चाइये मतलब वो जमा पूंजी में विश्वास रखता था और सबसे छोटा भाई हमेशा यह सोचता था की कमाई इतनी होनी चाइये की मेरी कमाई में कमसे कम 100 लोगो का घर पल जाए मतलब वह एक व्यापारी बनने की सोच रखता था। समय बीतता गया और तीनो ने अपने लक्ष्य के लिए काफी मेहनत की और अपने लक्ष्य हमेशा हासिल भी किये। एक दिन अचानक उनके पिताजी काफी बीमार हो गए और उन्हें ऑपरेशन करने की ज़रूरत आन पढ़ी जिसके लिए काफी पैसा लगने वाला था, और तीनो भाइयो पर ये ज़िम्मेदारी थी की उन्हें उनके पिता का इलाज करना है। ऐसे हालात में आपको क्या लगता है की कौन उनके लिए आगे बढेगा और किसकी मेहनत उनके लिए काम आएगी? मैं बताता हु - सबसे बड़ा भाई अपने पिता के लिए कुछ नही कर पायेगा क्योंकि वो तो बेचारा कमाता ही इतना था जिसमे में वो सिर्फ अपने परिवार का पेट भर सके तो उसकी इतनी मेहनत बेकार गयी, और दूसरा भाई भले ही पैसा कमाने के बाद थोड़ा बहोत पैसा बचाता हो लेकिन वो खर्च करने के बाद वो खुद भिकारी बन जाएगा जिस वजह से उसकी भी मेहनत बेकार गयी, औऱ अब बात करते है तीसरे भाई की जो इतना पैसा कमाता है जिसमे वो 100 लोगो का परिवार पाल लेता है तो ज़ाहिर है उसके लिए उसके पिताजी का इलाज करना काफी आसान है, और इलाज करने के बाद उसे शायद उतना फर्क भी नही पड़ेगा मतलब उसकी मेहनत उसके और सबके काम आयी। इस उदहारण से आप समझ ही गए होंगे की मेहनत को मकसद देना कितना ज़रूरी है जो की एक मजदूर और एक हमाल नही देता और अब शायद आप परिश्रम की ताक़त को समझ ही गए होंगे, लेकिन परिश्रम करने के इस प्रकिया में हमे काफी त्याग भी करने पड़ते है और त्याग क्या है आइये कुछ शब्दो में समझते है।


             त्याग! क्या है त्याग? त्याग है समर्पण अपने जीवन की आदतों का जिसको  करने में मज़ा तो आता है, लेकिन वो आपको कुछ रिटर्न में नही देती,अर्थात सुबह जल्दी ना उठना, सिग्गरेट पीना, शराब पीना, समय को बेमतलब के कामो में वैर्थ करना आदि। ज़रा आप ही सोचिये मैन जो भी बाते कही है क्या कभी इन चीज़ों से आपका कुछ फायदा हुआ है या फिर कभी इन बातो से आपकी कीमत बड़ी है। नही! बड़ ही नही सकती, क्योंकि ये चीज़े आपकी ज़िन्दगी सिर्फ बर्बाद कर सकती है, और आपको परिश्रम करने से रोक सकती है जिससे आप सफलता कभी हासिल नही कर सकते और हमेशा गरीबी से ही झुजोगे। त्याग की एक खासियत है की ये आपको सिर्फ फायदा ही देगी और कभी नुकसान नही होने देगी तो मेरे दोस्तो आज के इस आखरी नियम के साथ आप सभी ठान लो की आप आज से सब कुछ त्यागने के लिए तैयार हो गए हो जो आपकी सफलता के आड़े आती है। भले कितनी ही नींद क्यों न आये सुबह उठने के लिए तैयार हो चुके हो, भले ही कितनी तलब क्यों न हो सिग्गरेट,शराब की लत त्यागने को तैयार हो गए हो, और जिस दिन अपने यह सब चीज़े पूरी तहर त्याग दी सफलता आप की ओर आपने आप आकर्षित हो जाएगी और एक दिन आपके कदम भी चूमेगी।
                                                             धन्यवाद!